अनुभव का भार
झुर्रियों में बिठाए
एक बिखरा आदमी
नए साल की पार्टी
मनाते बच्चों को
देर तक देखता रहा…
आह भरी,
उसी भीड़ में हो गया
ओझल ।
बीते साल की तरह ।
अनुभव का भार
झुर्रियों में बिठाए
एक बिखरा आदमी
नए साल की पार्टी
मनाते बच्चों को
देर तक देखता रहा…
आह भरी,
उसी भीड़ में हो गया
ओझल ।
बीते साल की तरह ।