धुआँ कालिख
छोड़ जाता है,
गुजरता हुआ
आंखों में अपनी मुलाकात
के निशां छोड़ जाता है
नजर धुंधला जाता है
धुंधलके में हक
किसी का कोई दबा जाता है
बाहर ही नहीं
अंतस में भी भरा होता है, धुआँ
मारती है जिसमें
कुलांचें
ढेर सारी नाकारात्मकता
धुआँ कालिख
छोड़ जाता है,
गुजरता हुआ
आंखों में अपनी मुलाकात
के निशां छोड़ जाता है
नजर धुंधला जाता है
धुंधलके में हक
किसी का कोई दबा जाता है
बाहर ही नहीं
अंतस में भी भरा होता है, धुआँ
मारती है जिसमें
कुलांचें
ढेर सारी नाकारात्मकता