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है वाजिब / साहिल परमार

बादल-सा गरजता यह इनकार भी है वाजिब
करवट-सा पलटता यह प्यार भी है वाजिब

जँघा में साँप बन कर डसता हूँ रात भर मैं
मेरे लिए ये तेरा धिक्कार भी है वाजिब

पीपल के सूखे पत्ते पलकों में मेरी काँपे
तूफाँ की तरह तेरी फुत्कार भी है वाजिब

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार