होती रहती मनमानी है
दुनियाँ फिर भी अनजानी है
है कानून नियम सब झूठे
बात हुई सब बेमानी है
लिखी हुई है जो ग्रंथों में
वे बातें किसने मानी है
दुनियाँ एक सफ़ारी जैसी
हर इक मानव सैलानी हैं
बिना नियम चलती सरकारें
होती बेहद हैरानी है