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होते कुछ भी गर / मोहिनी सिंह

दो फूलों की तरह पास होते तो
मिली जुली एक नई गंध ही बनाते
मैं फूल तुम भंवरा होते तो
मेरा आँचल लाल ही कर जाते
मैं नदी तुम सागर होते तो
मैं खो जाती जब तुम मुझको पाते
और होते कुछ भी
जो होता है रूमानी कविताओं में
तो भी क्या?
बस बिम्ब और उपमाएं ही बनाते!
पर अब देखो हम हैं
पास पड़े दो पत्थरों की तरह
रगड़ खाते हैं
पर मेरी जान
आग तो लगाते हैं न!