Last modified on 6 मार्च 2011, at 14:38

होते हैं रंग हजार / सांवर दइया

मैं ने यह कब कहा
मैं ने नहीं कही यह बात-
हम-तुम एक ।
लेकिन
तुम तक पहुंची जो बात
वह मेरी नहीं
फिर कैसे हो सकता है- अर्थ मेरा ?

जरूरत है इतना-सा जान लें
यह दुनिया है बाजार
और हवा के होते हैं रंग हजार !

अनुवाद : नीरज दइया