होत पराते सखि आँगन बहरिहे, घूरवा लगइहे बड़ी दूर हे।
पानी भरी थलथरी में धरिहे, जनि घरइहे फूहरी नाँव हे।।१।।
होत पराते सखि पनिया जे भरिहे, घूँघट त लीहे काढ़ि हे।
परेया पुरुख देखि पाँजर जानि दबिहे, कि जनि धरइहे बेसवा नाँव रे।।२।।
एतने बचनिया ए सखि।
गाई के गोबर पियरा माटी, अँगना दहादही होइहें।
बूझि-समुझि के नून लगइहे, कि नाहीं तीत, नाहीं मधुर हे।।३।।
एतने बचनिया ए सखि।