रोज़ सुबह निकलना घर से
दोस्तों से मिलना
होटलों में
एक कप चाय पर
चार घंटे
हेगेल, मार्क्स
सार्त्र, कामू, काफ़्का
रामचन्द्र शुक्ल और निराला
रामविलास शर्मा और अज्ञेय
नामवर सिंह और नागार्जुन
बातें बातें बातें
बातों की एक अनवरत यात्रा
कभी झील के किनारे बैठना
नहाना ललाती साँझ और लहरों में
और चिड़ियों के कूजन में
इसी तरह बीत जाना पच्चीस की उम्र
और शुरू होना
एक अदद नौकरी की तलाश
कहीं बैंक में कारकून होना
होना एक बीवी और दो बच्चे
और गृहस्थी का ढेर सारा जंजाल
और इसी तरह बीत जाना साठ की उम्र
फिर शुरू होना एक प्रतीक्षा का
मृत्यु के पास ख़ुद को खींचता हुआ पाना
यह कहाँ जा रहा है हमारा समाज
यह कैसी यात्रा है
निष्कर्षहीन
दायित्वहीन
व्यर्थ
इसके ऊपर भी जीवन है
नीचे भी जीवन
आगे भी जीवन
पीछे भी जीवन
सौन्दर्य जीवन का चुक जाना
स्वाद न आना जीने का
बीते हुए समय पर आँसू बहाना
जीवन को आगे बढ़ाने के लिए
कन्धा न देना
न सोचना
होना, शुरू होना ऎसे जीवन का
क्या है
जहाँ होना, नहीं होना
(रचनाकाल : 1985)