तुम धरती पर पर्वत की तरह करवट लेटना
तुम पर नदियाँ चाहना से भरी देह लिए इठलाती बहेंगी
तुम भव्यता और मामूलीपन की दांतकाटी दोस्ती में बदल जाना
तुम पर लोक कथाएँ अपनी गीली साड़ियाँ सुखायेंगी
तुम रात के आकाश का नक्षत्री विस्तार हो जाओ
दिशाज्ञान के जिज्ञासु तुम्हारा सत्कार करें
तुम पानी की वह बूँद होना
जो कुमारसंभव की तपस्यारत पार्वती की पलकों पर गिरी
जिसने माथे के दर्प से ह्रदय के प्रेम तक की यात्रा पूरी की
तुम चरम तपस्या में की गई वह अदम्य कामना होना
अगर होना ही है तो लता का वह हिस्सा होना
जो एक तरफ मूर्छा से उठी वसंतसेना थामती है
दूसरी तरफ भिक्षु संवाहक
तुम आसक्ति और सन्यास की संधि होना
तुम्हारी निश्छल आँखों में संध्या तारा बनकर फूटे बेला की कलियाँ
नेह से भर आये स्वर में प्राप्तियों की मचलती मछलियाँ गोता लगायें
तुम मन की ऊँची उड़ान से ऊब कर टूटा पंख बनना
कोई आदिवासिन नृत्यांगना तुम्हें जुड़े में खोंसेगी
तुम उसकी कदमताल पर थिरकना
जो तुम्हें माथे सजाये
उसकी चाल की लय पर डूबना-उबरना।