(राग रामकली)
होरी के मदमाते आए, लागै हो मोहन मोहिं सुहाए ।
चतुर खिलारिन बस करि पाए, खेलि-खेल सब रैन जगाए ॥
दृग अनुराग गुलाल भराए, अंग-अंग बहु रंग रचाए ।
अबीर-कुमकुमा केसरि लैकै, चोबा की बहु कींच मचाए ॥
जिहिं जाने तिहिं पकरि नँचाए, सरबस फगुवा दै मुकराए ।
’आनँदघन’ रस बरसि सिराए, भली करी हम ही पै छाए ॥