Last modified on 19 जनवरी 2016, at 13:40

होली-17 / नज़ीर अकबराबादी

सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में।
कि यार रखते हैं यारों का मान होली में॥
वह अपनी छोड़ दे अब ज़िद की आन होली में।
हमारे साथ तू चल महरबान होली में।
फिर तेरी घट न जावेगी शान होली में॥1॥

ज़रा तू घर से निकल देख कु़दरते अल्लाह।
कि रंग में भीग रहे हैं तमाम माहियों माह<ref>मछली और चांद पाताल से आकाश तक</ref>॥
खड़े हैं पीरो जवां तिफ्ल नाजनीं सरे राह।
किसी की सुर्ख है पगड़ी किसी की ज़र्द कुलाह<ref>टोपी</ref>॥
खुशी से मस्त है यक्सर जहान होली में॥2॥

नशे में कितने तो माशूक हैंगे मतवाले।
जल्वे उनके हज़ारों हैं देखने वाले॥
किसी के हाथ में शीशे किसी के हैं प्याले।
किसी ने हाथ किसी के गले में हैं डाले॥
करे हैं ऐश सभी मैकशान<ref>शराब पीने वाले</ref> होली में॥3॥

कोई तो बांधे है दस्तार गुलनारी।
किसी के हाथ में हैंगा गुलाल पिचकारी॥
किसी की रंग में पोशाक ग़र्क है सारी।
किसी के गाल पे है सुर्ख़ रंग की धारी॥
अजब बहार जो ठहरी है आन होली में॥4॥

कहीं जो देखा तो है नाज़नीं बहुत चंचल है।
कि जिसको देखके आशिक का दिल न पावै कल॥
गले और बाजू में पहने हैं नौरतन<ref>नौ नगा नाम का गहना</ref> हैकल<ref>चौकोर पान के तथा अन्य प्रकार के आकार के कई जंतरों से बना गले में पहनने का स्त्रियों का एक गहना, हुमेल</ref>।
चले जो राह कमर में पड़े हैं सौ सौ बल॥
है इस तरह का वह नाजु़क मियान<ref>नाजुक कमरवाला</ref> होली में॥5॥

तमाम शहर में हरसू मची हैं रंगरलियां।
गुलाल अबीर से गुलज़ार हैं सभी गलियां॥
कोई किसी के साथ कर रहा है अचपलियां।
गरज़ कि ज़ोर हवाएं हैं ऐश की चलियां॥
किसी को ऐश सिवा कुछ न ध्यान होली में॥6॥

‘नज़ीर’ होली तो हरजा हो रही होगी।
पर हमने सैर यह इक बाग़ में अजब देखी॥
दीवारें बाग़ की यक्सर सुनहरी नक़्क़ाशी।
और उनके बीच में एक नौबहार बारहदरी॥
ज़री का उसमें खिंचा सायवान होली में॥7॥

हर एक ने अपने मुआफ़िक़ दिया है फ़र्श बिछा।
खु़शी से बैठा हुआ सैर बाग़ की करता॥
है भीड़ भाड़ का अब इस ज़हूर का चर्चा।
कि बीच बाग़ के तिल धरने को नहीं है जा॥
रहा था न कोई खाली मकान होली में॥8॥

हुई है किसी परविश मुखविचों<ref>शराब बेचने वाले</ref> की दुकान।
तरह तरह की शराबों का किया सामान॥
कोई कहे है कि मेरी गुलाबी भर दे जान।
रुपया अशर्फी का इस क़दर है वारान॥
कि वह दुकान हुई ज़र की खान होली में॥9॥

और कितने ऐसे हैं सूरत के उनके मतवाले।
कि उनकी आंखसे पीते हैं दम बदम प्याले॥
कहते हैं ‘हाय’ ‘हाय’ रे इन ज़ालिमों ने घर घाले।
कहीं हज़ारों व लाखों हैं देखने वाले॥
खड़े हैं सामने घेरे दुकान होली में॥10॥

हज़ारों खोमचे वाले फिर हैं लालो लाल।
पुकारते हैं मिठाई है और मोंठ की दाल॥
तमोली बैठे हैं बीड़ों में अपना मुंह कर लाल।
कोई पुकारे है क्या ज़ोर है नशे रंग लाल॥
कोई नशा, कोई खाता है पान होली में॥11॥

कोई तो हुस्न में अपने कहे हैं गुलशन हूं।
कोई बहार दिखाकर कहे हैं लालन हूं॥
लुभा के दिल के और बोला कि मैं तो मोहन हूं।
कोई पुकारे है आशिक मैं बामन हूं॥
दिलाओ अब कोई बोसे का दान होली में॥12॥

कोई किसी के ऊपर लाल घड़ा छुड़ाता है।
कोई गुलाल किसी के मुंह पे फेंक जाता है॥
कोई किसी के नई गालियां सुनाता है।
मुआफ़िक अपने हरेक होली को मनाता है॥
गरज़ कि दोनों ही की है आन बान होली में॥13॥

शब्दार्थ
<references/>