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होली-20 / नज़ीर अकबराबादी

जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली।
आके मुखड़े की बलाएं अभी ले ले होली॥
रात छाती से लिपट रंग छिड़क मल के गुलाल।
क्या हम शोख़ से खेले हैं ले ले होली॥
गालियां देते हैं और मलते हैं कीचड़ मुंह पर।
तुम से ऐ यार! जो भड़ुआ हो सो खेले होली॥
पहन कर आते हैं यह गुलरू जो छिड़कवां जोड़े।
उनका आशिक़ जो कोई हो वही खेले होली॥
सब तो हैं आशिक़ माशूक़ व लेकिन प्यारे।
क्या मजे़ के वह दिखाती हैं झमेले होली॥
कहीं गाली कहीं झिड़की, कहीं कोहनी, कहीं लात।
सौ अदाओं के बहा देती है रेले होली॥
शुक्र है आज तो मुद्दत में बना रंग ”नज़ीर“।
अपने हम यार से दिल खोल के खेले होली॥

शब्दार्थ
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