मुखड़े न रँगे हों तो
होली किस काम की ?
रंगों के बिना है, भैया !
होली बस नाम की।
चाहे हो अबीर भैया,
चाहे वो गुलाल हो,
मजा है तभी जब भैया,
मुखड़ा ये लाल हो,
बंदरों के बिना कैसी
जय सिया-राम की ?
रंग चढ़े टेसू का या
किसी और फूल का,
माथे लगे टीका लेकिन
गलियों की धूल का,
धूल के बिना ना मने
होली घनश्याम की।