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होली के बहार / ब्रह्मदेव कुमार

होली के ऐलै जे बहार, होलैयाँ बबाल करै छै।
बहै छै वसंती बयार, होलैयाँ धमाल करै छै॥

नाली रोॅ कादोॅ सेॅ खेलै छै मरदा
केकरोॅ नै छोड़ै, नै बख्सै बेदरदा।
भूतो-पिचास भागै लद्दी पार, होलैयाँ बबाल करै छै॥

रंगोॅ-विरंगोॅ सेॅ भीजै छै गोरिया
लाल पीला हरा अबीर करै झकझोरिया।
धरती दुल्हनियाँ के श्रृगार, होलैयाँ बबाल करै छै॥

डीसी-डीडीसी भूचाल मचाबै
डियो डीएससी धुरखेल उड़ाबै।
एसडीओ मचाबै हाहाकार, होलैयाँ बबाल करै छै॥

टावर चैंक के देखोॅ खपसूरती
रंग-अबीर खेलै सिदू-कान्हू मूरती।
अशोक-स्तम्भ धूनै छै कपार, होलैयाँ बबाल करै छै॥

होली के परब जे मस्ती बोलाबै
सब दुख बिसारी, जे खुशी मनाबै।
दिलोॅ के सुनोॅ झनकार, होलैयाँ बबाल करै छै॥