टेक- मुरारी जाण दो तुम से ना खेलां होरी।
चौक-1 होरी की धूम मचाई हो साँवलिया खेल रहे बल जोरी।
कच्चे पक्के डोर रेसम के हो तोड़े।
तो झड़ गई कोर किनारी, लालजी ने बयाँ मरोड़ी।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-2 ददी बेचेन चली है गुवालन सिर पर दही केरी गोली।
घर-घर कहती तुम लेवो रे दहियाँ तो मटकी में आन बसोई,
लालजी ने घांघर ढोली।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-3 पांय न बेऊ पायल सोहे, झालर करे झनकोरी।
गोरी-गोरी बईयाँ हरी-हरी चूड़ियाँ।
तो रंगीन रंगिया हाथ लालजी ने मेंदी विकोरी।
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
चौक-4 खेलत गेंद गिरी है जमुना में तुने मेंरि गेंद चुराई।
न हाकत हाथ ढूंढत आंगियाँ में।
एक गइ दूजी पाई, लालजी ने चोरी लगाई,
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
छाप- धन गोकल धन-धन बिन्द्रावन, धन हो जसोदा माई।
धन मयता नरसइया नू स्वामी,
तो मांगु ते बेउ कर जोड़ी, सदा संग रहूँगा तुम्हारी,
जान दो तुमसे ना खेलां होरी।
- हे श्रीकृष्ण! मुझै जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है। अरे साँवरे! की धूम मचाई है और जबरन करके (बरबस) मेरे साथ होली खेलना चाहते हो। मेरी साड़ी के कच्चे-पक्के धागे तोड़ दिये और किनारी निकलकर
गिर गई और श्रीकृष्ण ने मेरी बाँह मरोड़ दी। मुझे जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है।
ग्वालिन दही की मटकी सिर पर उठाकर दही बेचने चली और घर-घर फिरकर कहती है- दही ले लो। तो श्रीकृष्ण ने मटकी पकड़कर दही ढोल दिया। और होली खेलना चाहते हैं। गोपी कहती है कि- मुझे जाने दो, आपके साथ होली नहीं खेलना है।
दोनों पैरों में पायजेब शोभायान हैं और पायजेब की झालर की झन्कार निकल रही है। गोरी-गोरी कलाइयों में हरी-हरी चूड़ियाँ शोभित हैं। और मेरे हाथों में मेहंदी लगी हुई है। लालजी (श्रीकृष्ण) ने मेरी मेहंदी हाथों पर लगी हुई बिखेर दी। मुझे जाने दो आपके साथ होली नहीं खेलना है।
श्रीकृष्ण गेंद खेल रहे थे। गेंद यमुना में गिर पड़ी और मेरे सिर चोरी लगाते हैं कि तूने मेरी गेंद चुरा ली और अंगिया में हाथ डालकर खोजते हैं। एक गेंद गई दूसरी मिल गई, श्रीकृष्ण ने मुझ पर चोरी डाली। जाने दो आपके साथ होली
नहीं खेलना है।
गोकुल, वुन्दावन और यशोदा माता धन्य हो, नरसिंह मेहता के स्वामी सांवळिया धन्य हो। दोनों हाथ जोड़कर वर माँगती हूँ कि सदा आपके साथ रहूँगी। जाने दो आपके साथ होली नहीं खेलना है।