Last modified on 11 अक्टूबर 2011, at 16:32

होश / मधुप मोहता


होश की बात मत किया कीजै
होश की बात करना वहशत है।

रोशनी ख़्वाब है बस अंधों का
आंखवालों के लिए दहशत है।

रोज़ मर-मर के जी रहे हैं मगर,
और जीने की अभी हसरत है।

बोझ है पर उठाए फिरते हैं
ज़िंदगी क्या हसीन ज़हमत है।