बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
हो गई स्याम बिछुरतन जीरन,
बृज में एक अहीरन।
कल नई परत काल की ढूँड़त,
कालिन्दी कै तीरन।
भरमत फिरत चित्त नई ठौरें,
उठत करेजें पीरन।
हमरौ जनम बिगार चले गये-
डारकें मोह-जँजीरन।
वन वन व्याकुल फिरत ईसुरी
राधा भई फकीरन।