हो गया है मुझ को विश्वास
श्वास है जीवन का आभास
कहो मत, रहो मौन दिन रात
सहो जीवन के संचित भोग
भाग कर यहाँ बचा है कौन
अटल है कर्मों के संयोग
यही है जीवन का इतिहास
मरण जीवन से कितनी दूर
कर रहा छिप कर शर संधान
चल रहा है जग दुखी उदास
न कुछ भी ज्ञान न कुछ अनुमान
इसी में है घट का उल्लास
जगाता है लहरों को पवन
सरोवर के उर में एकांत
डोलते चंचल कमल कलाप
यही है गति, रति में उद्भ्रांत
मुग्ध भौरे का सौरभ लास
(रचना-काल - 29-10-48)