यह सुबह शाम की बेकली
देह का मोह-उत्सव
सड़क पर टिकटिकायी
निगाह बावली
भरे-भरे दाँतों के
गुदे बदन पर नील कमल
जाने दो
हो जाने दो मुक्त
आज अपनी ही राख से
उडूँ झाड़कर पंख
चीर आकाश
यह सुबह शाम की बेकली
देह का मोह-उत्सव
सड़क पर टिकटिकायी
निगाह बावली
भरे-भरे दाँतों के
गुदे बदन पर नील कमल
जाने दो
हो जाने दो मुक्त
आज अपनी ही राख से
उडूँ झाड़कर पंख
चीर आकाश