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हौ एत्तेक बात जब चुहरा सुनै छै / मैथिली लोकगीत

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हौ एत्तेक बात आय चुहरा सुनै छै
उठा-पठा देह कोहबरमे पटकैय
जो गै बेइमनमी नीक नै हेतौ
धोखामे हमरा सत करौलही
जइ दिन जनम पकरिया लेलही
अपना जानि के पहरा केलीयै
मन के ममोलबा मनेमे रहि गेल
जो गै बेइमनमी भल नइ हेतौ
केना धरमुआ चन्द्रा के लेबै मैया गै
हौ एत्तेक जे चुहरा कहै छै
सुनऽ सुनऽ सुन रे चुहरा
बहिन मानि पलंग पर चढ़ियौ
लाल पलंग पर चुहरा गेलै
सब समान चुहरा जे लैये
सवा लाख के गलामे गिरमल
हीरा हार गला से लैये
सब समान चन्द्रा के लै छै
सोना मुरटीया चुहर लैये
सवा लाख के गहना लै छै
जशम निशन चन्द्रा के लैये
सवा सेर के पायल चोराबै
पीटुआ चूड़ी हाथ से लैये
कान कनफूलिया कान से लैये
हौ बीजुआ नथिया नाक से लेलकै
टुमकी मुनकी नाक से लैये
माँग मंगटीका माँग से लैये
हीरा मोती के हार चोराबै
रूनकी झूनकी जुट्टी गुहल छै
डाँर डरकशना सोना के लैये
हौ सवा लाख के जरसी लैये
काड़ा-पजारा तइ पर छाड़ा
पथल नींद चन्द्रा के भऽ गेल
एको समधिया नइ चन्द्रा बुझै छै यौ।।