किसने तेरे अन्तर के
तारों को फिर झंकार दिया
अन्धकारमय इस जीवन को
आलोकित संसार दिया
किस छवि की सुधि में अपनी
सुधि सारी दुनिया भूल गई
किसकी सांसों के झूले पर
मानवता फिर झूल गई
किसने राह बनायी जिस पर
बिछे हुए ये शूल घने
किसके चरण कमल छूते ही
शूल बदल सब फूल बने
किसने तेरी अन्धी आँखों
में भर दी फिर ज्योति अमर
किसका पाकर एक सहारा
जीत गये तुम घोर समर
मानवता के भाग्य-गगन में
फूटी थी किसकी लाली
किसे देख दानवता ने फिर
अपनी आँखें सकुचा ली
घनीभूत थी जहाँ वेदना
पड़ी कामना रोती थी
जहाँ साधना छटपट करती
आखिर निष्फल होती थी
अभी हृदय कि अन्ध कुहर में
किसने नव आलोक दिया
किसने पतितों की सेवा कर
दूर हृदय से शोक किया
तुम उसका ही नाम बेचकर
क्या करते हो सच बोलो
अपना ही ईमान उठाकर
अपनी धड़कन पर तोलो