Last modified on 26 जुलाई 2016, at 23:47

’कुछ नहीं’ / भावना मिश्र

‘कुछ नहीं’
ये दो शब्द नहीं
किसी गहरी नदी के दो पाट हैं
जिनके बीच बाँध रखा है हर औरत ने
अनगिन पीड़ाओं, आँसुओं और त्रास को

इन दो पाटों के बीच वो समेट
लेती है सारे सुख दुःख

बहुत गहरे जब मुस्काती है
या जब असह्य होती है
मन की व्यथा
तब हर सवाल के जवाब में
इतना भर ही
तो कह पाती है
औरत
‘कुछ नहीं’