Last modified on 31 मार्च 2017, at 11:06

124 / हीर / वारिस शाह

कैदो आखदा मलकिए भेड़िए नी तेरी धीउ नूं वडा चंचल चाया ई
जाए नदी ते चाक दे नाल घुलदी एस मुलख दा अध गवाया ई
मां बाप काजी सभे होड़ थके एस इक ना जीउ ते लाया ई
मुंह घुट रहे वाल पुट रही थक हुट रही गैब चाया ई
हिक हुट रहे सिर सुट रहे अंत हुट रहे मन ताया ई
वारस शाह मियां सुते मामले नूं लंगे लुचेने फेर जगाया ई

शब्दार्थ
<references/>