धन्य सुभग स्वर्णिम दिन तुमको,
धन्य तुम्हारी शुभ घड़ियाँ।
जिनमें पराधीन भारत माँ,
की खुल पाईं हथकड़ियाँ॥
भौतिक बल के दृढ़-विश्वासी,
झुके आत्मबल के आगे।
सत्य-अहिंसा के सम्बल से,
भाग्य हमारे फिर जागे॥
उस बूढ़े तापस के तप का,
जग में प्रकट प्रभाव हुआ।
फिर स्वतन्त्रता देवी का,
इस भू पर प्रादुर्भाव हुआ॥
नव सुषमा-युत कमला ने,
सब स्वागत का सामान किया।
कवि के मुख से स्वयं शारदा,
ने था मंगल-गान किया॥
जय-जय की ध्वनि से गुंजित,
नभ-मंडल भी था डोल उठा।
नव जीवन पाकर भूतल का,
कण-कण भी था बोल उठा॥
श्रद्धा से शत-शत प्रणाम
उन देश प्रेम-दीवानों को।
अमर शहीद हुए जो कर
न्यौछावर अपने प्राणों को॥
कितने ही नवयुवक स्वत्व
समरांगण में खुलकर खेले।
अत्याचारी उस डायर के
वार छातियों पर झेले॥
कितनों ने कारागृह में ही,
जीवन का अवसान किया।
अपने पावनतम सुध्येय पर,
सुख से सब कुछ वार दिया॥
कितनों ने हँस कर फाँसी को,
चूमा, मुख से आह न की।
सन्मुख अपने निश्चित पथ के,
प्राणों की परवाह न की॥
अगणित माँ के लाल हुए,
बलिदान देश बलिवेदी पर।
तब भारत माँ ने पाया,
ये दिवस आज का अति सुखकर॥
पन्द्रह अगस्त का यह शुभ दिन
कभी न भूला जायेगा।
स्वर्णाक्षर में अंकित होगा,
उच्च अमर पद पायेगा॥