क्या आज बीस अक्तूबर है, आँखों में ख़ून उतरता है।
भुजदण्ड फड़कते हैं दोनों, अन्तर में जोश उभरता है॥
यह दिवस वही जब आग लगी, हिम शिखरों पर हिम पुंजों पर।
यह दिवस वही बारूद बिछी जब प्रेम प्रीति के कुंजों पर॥
यह दिन है वह, सीमाओं पर जब खिली खून की थी होली।
जब माँ का मुकुट बचाने को, उमड़ी थी टोली पर टोली॥
बेशर्म चीन ने आगे बढ़, जब आज़ादी को था ताका।
जब वीर प्रसू भारत भू पर फिर रचा गया था नव साका॥
अपनी चिर आन बचाने को वीरों ने प्राण गँवाये थे।
बहनों ने भाई विदा किये, माओं ने लाल लुटाये थे॥
जब भारत के दीवानों ने तन-मन-धन सब कुछ दे डाला।
थे मचल रहे मर मिटने को, सब देशप्रेम की पी हाला॥
क्या भूल गये कल की बातें? क्यों मग्न हुए रँगरलियों में।
ख़तरा सिर पर मंडराता है, तुम जश्न मनाते गलियों में॥
ओ युवको! कुछ सोचो-समझो तुम भारत की भावी आशा।
तुम सत्य-अहिंसा के पोषक, तुम बल पौरुष की परिभाषा॥
तुम वीर शिवा के वंशज हो तुम नेता हो तुम सेनानी।
क्या देख सकोगे बोलो फिर माता की आँखों में पानी॥
क्या सिंह सपूतों के रहते, अत्याचारी बढ़ आयेगा।
वह वीर शहीदों का लोहू बन कर कुछ रंग न लायेगा॥
है उसी लहू की कसम तुम्हें राणा प्रताप अभिमानी की।
है कसम हिमालय की तुमको, गंगा-यमुना के पानी की॥
मत मीठे सपनों में डूबो, मत सुख के रास रचाओ तुम।
अन्यायी से निर्भय जूझो, बर्बरता से टकराओ तुम॥
फिर बहे जवानी की सरिता संयम अनुशासन कूलों में।
मत मोम बनो मत पिघलों तुम, मुस्काओ तीक्ष्ण शूलों में॥
लेकर आया यह दिवस सुनो! सन्देश एक हो जाने का।
सब भेदभाव बिसराने का, फिर अजय शक्ति प्रगटाने का॥
वह पंचशील को भूल गया, तुम पांचजन्य का घोष करो।
पेकिंग तक धावा बोलो तुम, मत सीमा पर सन्तोष करो॥