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246 / हीर / वारिस शाह

भोग भोगना दुध ते दहीं पीवन पिंडा पालके रात दिन धोवना एं
खरा कठन है फकर दी वाट झागन<ref>फकीरी</ref> मुंहों आखके काहे वगोवना एं
वाहें वंझली त्रीमतां नित घूरे गाईं महीं वलायके चोवना एं
वारस आख जटा केही बनी तैनूं सुआद छडके खेह<ref>मिट्टी</ref> क्यों होवना एं

शब्दार्थ
<references/>