Last modified on 29 मार्च 2017, at 17:32

27 / हीर / वारिस शाह

रूह छड कलबूत<ref>शरीर</ref> जिउं विदा हुंदा तिवें ऐह दरवेस सिधारिया ई
अन्न पाणी हज़ारे दा कसम कर के जीऊ झंग सिआलां नूं धारिया ई
कीता रिज़क<ref>रोजी</ref> ने खरा उदास रांझा चलो चली ही जिऊ पुकारिया ई
कच्छे वंझली मार के रवां<ref>वियोग, विछोड़ा</ref> होया वारिस वतन ते देस विसारिया ई

शब्दार्थ
<references/>