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286 / हीर / वारिस शाह

मार आशकां दी लज लाह सुटी यारी लाके घिंन लै जावनी सी
अंत खेड़यां वयाह लै जावनी सी यारी उसदे नाल ना लावनी सी
ऐडी धुम कियों मूरखा! पावणी सी एह सूरत न गधे चड़ावनी सी
वारस शाह जे मंग ले गए खेड़े दाढ़ी परे दे विच क्यों मुणावनी सी

शब्दार्थ
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