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373 / हीर / वारिस शाह

जिस जट दे खेत नूं अग्ग लगी ओह रहिवां<ref>मुज़ाहरा</ref> वढके गाह लया
लावेहार<ref>लावियां करने वाले</ref> राखे विदा होए ना उमैद हो के जट राह लया
जेहड़े बाज तों काउं ने कूंज खोही सबर शुकर कर बाज फना लया
दुनियां छड उदासियां पैहन लइयां सयद वारसों हुण वारस शाह होया

शब्दार्थ
<references/>