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573 / हीर / वारिस शाह

इस पद्य में इंद्र की बहुत सारी पुरियों के नाम हैं

जिवें इंदर ते कहर दी नजर करके महखासरो पुरी लुटवाया ई
सुरग पुरी अमरापुरी इंद्रपुरी देवपुरी मख वासते लाया ई
कहर घती जे भदरका मारयो ई चंड मुंड सभ भसम कराया ई
रकत बीज महखासरों लाह सुटे परचंड कर पलक विच आया ई
ओह कोप करी जेहड़ा पया रावन रामचंद तों लंक लुटवाया ई
ओह कोप करी जेहड़ा पांडवां तों कुरक्षेत्र दे विच करवाया ई
द्रोपदी चाड़ जो लायक भील भीखम जेहड़ा कौरवां दे गल पाया ई
करोध घतके जोय हरनाकशे ते नाल नखा दे ढिड पढ़वाया ई
घत करो जो द्रोपदी नाल होई वेद नाल पुरान बचाया ई
घत करोप जो राम नाल नील लछमन कंभकरन ते बाब कराया ई
घत करोप जिउ सीता मारिच मारयो महांदेव दा कुंड काप भनाया ई
घत करोप करी जेहड़ा सिरा इतनायां दे चिखा बूहे दे विच कराया ई
एसदा आखना रब्ब मनजूर कीता तुरत ाहर नूं अग लगाया ई
वारस शाह मियां वांग शहर लंका चारों तरफ ही अग मचाया ई

शब्दार्थ
<references/>