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87 / हीर / वारिस शाह

अधी डुल पई अधी खोह लई चून<ref>थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करना</ref> मेल के परे विच लयांवदा ए
कहया मन्नदे नहीं सउ मूल मेरा चूरी पलयों खोल विखांवदाए
नहीं चूचके नूं कोई मत देंदा पढी मार के नहीं समझांवदा ए
चाक नाल इकलड़ी जाय बेले अज कल कोई लीक लांवदा ए
जिस वेलड़े महिर ने चाक रखया ओस वेलड़े नूं पछोतांवदा ए

शब्दार्थ
<references/>