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97 / हीर / वारिस शाह

वलौ बसतलाहि रिज़क अलअबादा<ref>परमात्मा का दिया खुला भंडार</ref> रज खाए के मुसतिआं चाइयां नी
कुलू वशरबू दा सी अमर होया ला तुसरे फू<ref>फजूलखर्ची ना करो</ref> फुरमाइयां नी
किथों पचण इहनां मुशटंडियां नूं नित खांवदे दुध मलाइयां नी
रिज़क रब्ब देसी असीं उठ चले लगा करन हुण ऐड चवाइयां नी
वमामिन बहिश्त फिलअरज<ref>धरती पर स्वर्ग</ref> होया आहे लै सांभ मझीं घर आइयां नी

शब्दार्थ
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