भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुद को रचता गया / नारायण सुर्वे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:39, 9 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नारायण सुर्वे |संग्रह= }} Category:मराठी भाषा {{KKCatKavi…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नारायण सुर्वे  » ख़ुद को रचता गया

आकाश खी मुद्रा पर अवलम्बित रहा नहीं मैं
किसी को भी सलाम करना कभी सम्भव नहीं हुआ, मुझे

पैगम्बर कई मिले, यह भी झूठ नहीं
ख़ुद को कभी हाथ जोड़ते देखा नहीं मैंने

घूमा मैं सभी में पर किसी को दीखा ही नहीं,
हम ऐसे कैसे ? ऐसा प्रश्न कभी ख़ुद से किया नहीं ।

झुण्ड बनाकर ब्रह्माण्ड में रंभाता घूमा नहीं
ख़ुद को ही रवता गया, यह आदत कभी गई नहीं।
</poem