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मुश्किल होता जा रहा है / नारायण सुर्वे

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हर रोज़ ख़ुद को धीरज देते जीना, मुश्किल होता जा रहा है
कितना रोके ख़ुद ही ख़ुद को, मुश्किल होता जा रहा है,
फूट-फूट कर रोने वाले मन को, थपकियाँ दे-देकर सुलाता हूँ
भूसी भरकर बनाए हुए पशु को देखकर, रुकना मुश्किल है,
समझौते में ही जीना होगा, जीता हूँ; पर रोज़, मुश्किल होता जा रहा है,
अपना अलग से अस्तित्त्व होते हुए भी, उसे नकारना, मुश्किल होता जा रहा है
समझ पाता हूँ, समझाता हूँ, बावजूद समझाने के, नहीं समझ पाता हूँ
कोठरी में कभी जलती दियासलाई नहीं गिरेगी, इसकी गारंटी देना,
मुश्किल होता जा रहा है ।

मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित