Last modified on 10 दिसम्बर 2010, at 20:49

राग कल्याण / पद / कबीर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 10 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |संग्रह=कबीर ग्रंथावली / कबीर }} {{KKPageNavigation |पीछे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऐसै मन लाइ लै राम रसनाँ,
कपट भगति कीजै कौन गुणाँ॥टेक॥
ज्यूँ मृग नादैं बध्यौ जाइ, प्यंड परे बाकौ ध्याँन न जाइ।
ज्यूँ जल मीन तेत कर जांनि, प्रांन तजै बिसरै नहीं बानि॥
भ्रिगी कीट रहै ल्यौ लाइ, ह्नै लोलीन भिंरग ह्नै जाइ॥
राम नाम निज अमृत सार, सुमिरि सुमिरि जन उतरे पार॥
कहै कबीर दासनि को दास, अब नहीं छाड़ौ हरि के चरन निवास॥393॥