भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौन निमंत्रण / पवन कुमार मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मधुबन को भीनी ख़ुशबू से
महकाए जब रजनीगंधा
अम्बर में तारो संग-संग
इतराए इठलाए चंदा
मुसकाते बलखाते झरने
लगे सुनाने गीत सुहाने
उनकी धुन पर ढलकी जाए
लोरी गाए जब संझा
मौन निमंत्रण मेरा प्रियतम
आ जाओ बन आनंदा
दीप बुझे जब जग के सारे
मन में दीप जलाना तुम
बुलबुल गीत सुनाती है तब
हौले से कदम बढ़ाना तुम
चौकड़िया भरते मृगशावक
राह दिखायेगे तुमको
मेरी बंशी की धुन
मेरा पता बताएगी तुमको
मधुर रागिनी सुनकर आली
आना तुम बन वृंदा
मौन निमंत्रण मेरा प्रियतम
आ जाओ बन आनंदा