निगाहों पर निगाहबानी बहुत है
नवाज़िश ज़िल्ले सुब्हानी बहुत है
यहाँ ऐसे ही हम कब बैठ जाते
तिरे कूचे में वीरानी बहुत है
अभी क़स्दे सफ़र का क़िस्सा कैसा
अभी राहों में आसानी बहुत है
तिरी आँखें ख़ुदा महफूज़ रक्खे
तिरी आँखों में हैरानी बहुत है
मुबारक उन को सुल्तानी अदब की
मुझे तो उस की दरबानी बहुत है