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नए आदमी से मुलाक़ात / विमल कुमार

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तुम क्या इस नए आदमी से मिलोगी
जो अब नहीं रहा एक पत्थर
न रेत, न धुआँ, न अँधेरा
न कोई चीख़, न कोई पुकार
न कोई आर्तनाद, न कोई विषाद
न कोई बात-बात पर विवाद

वह काफ़ी बदल चुका है
जब बदल गई है हवाएँ अपनी दिशाएँ
पक्षियों ने बदल लिए जब अपने घोंसले
यात्रियों ने अपने रास्ते
किराएदारों ने अपने मकान

क्या तुम इस नए आदमी से मिलोगी
जो अब पुराने विमल कुमार की तरह नहीं है
उसने बदल दी है अपने चेहरे की रंगत
अपनी आवाज़, अपनी आबोहवा
अपनी भाषा, अपना व्याकरण
अपनी जुल्फ़ें, अपनी पतलून
जूते, जुराब, मफ़लर, क़लम इत्यादि

वह अब चलता नहीं लंगड़ाता हुआ
नहीं बोलता कुछ हकलाता हुआ
नहीं हिलाता हाथ किसी को बिना समझाता हुआ
नहीं दिखता तुमसे मिलकर अब घबराता हुआ
इसलिए कहता हूँ
एक बार तुम फिर मुझसे मिल लो
जितनी शिकायतें हैं उसे दूर कर
फूल की तरह जीवन में बगीचे में खिल लो !