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अरज / प्रमोद कुमार शर्मा

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अरज म्हारी सुण ले
रे बनवारी !

आंख्यां थकां म्हूं आंधौं हूं
नीं कर सूझै उजास

करया घणाई प्रयास ......
पण बिना थारी किरपा
नीं फळयौ एक भी !
अब तूं ही बता -
म्हूं जारी राखूं प्रयास
का छोड़-छाड़ सौ कीं
भजूं तनै !