टाबरां रै नांव / प्रमोद कुमार शर्मा
आओ
आज बैठ‘र
सोचां आपां सगळा !
‘‘दूर-दूर तांई
जद नीं दिस्सै कोई मारग
इसै मांय
आपणै घरां सूं इज बणानी पड़ैली सुरंगां’’
आ बात सुणी
काल जद म्हारै दादै सूं
तो म्हारी निजरां
घर रै टाबरां अनै मोट्यारां रै
मुण्डै माथै सोधण लागी खीरा !
पण होवणौ पड़यौ
म्हानै सरमिन्दौ !
क्यूं के दादै नै आ बात
अब कियां कैवूं
कै सुरंगां तो पैलांइज बण री है घर मांय।
दादौ नीं जाणै
कै घर रा टाबर नीं पढ़ै इकबाल
टाबर देखै है आजकळ
सिलमै री लुगाइयां रा रंगीन फोटू।
अर पूछै म्हां सूं मतलब
प्यार अर रेप रो !
वे सगळा जावै म्हारौ मुण्डौ
अनै म्है जौवूं
वणा री दो सूत मोटी कड़
लिलपळा गोड़ा
अर आपरै ई बोझ सूं
लटक्यौड़ा मोडा !
सोचूं:
कियां झाल सकै ला
पुलिस रो एक डन्डौ
आपरी कड़ उपर
अर किण काळजै सूं सेवैला
देस री आत्मा पर हुयौड़ा रेप !
सोचूं:
दादै रौ कांई
वै तो ले चुक्या फसल
पण अबै ऐ टाबर
इण कविता रौ मतलब जाण सकैला ?