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सिसकियां / प्रमोद कुमार शर्मा

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ठौड़-ठौड़ पाटै
धरती रा बुसबुसिया
इण चांदणी रात मांय।
उपजै है दर्द !
चांद खुद गीत है चांदणै रौ अंधेरै मांय
थब्बीड़ा खांवतौ साव ऐकलौ
चांद नै देखतौ आदमी
नीं हुवै ऐकलो !
म्हूं फेर देख्यौ आज चांद !