सुणै पित्तर / प्रमोद कुमार शर्मा
‘‘पित्तर निराज है’’
मां जद-जद ई कैवे आ बात
घर री छात उपर
खिण्ड ज्यावै आखा !
ढूंढ ई ल्यावै मां
हांडक्या-कुळड़त्या सूं
ऐक रिपियौ चार आना
फेर बण जावै
गांव री मरियल सी दुकान रा
बोदा पतासा
परसाद म्हारै बूढ़ै थानां रो !
पित्तर निराज नीं होवणा चाइजै
मां कैवै-
भळ और सासीलाम !
दुगड़ी रे गूमड़ै मांय
नीं पडै़ राध !
बिछावणां मांय मूतै नीं
मोतियो !
सीधो काडूंली थारै नाम !
पण मां नी सुण सकै
पित्तरा रा ठहाका
लटकता घर री बूढी भींता सूं !
घर -
होळै-होळै
बदळ ज्यावै
पित्तरा रै देवरै मांय
पण
छेकड़ पड़ ई ज्यावै राध
दुगड़ी रै गुमड़ां मांय
अर निकळ‘ई ज्यावै मूत
मोतियै रो गूदड़ा मांय !
फेर ई
मानती रैवै मां
कै सो कीं ठीक कर देवैला
पित्तर महाराज !
अठै तांई कै
जीमण रै टैम
बापू रौ हथोड़ौ सो हाथ्
सेक ई देवै
किणी न किणी री पीठ।
माचै रोवा-कूकौ घर मांय
नाचैहै भूख च्यारूं कूंट
पण फेर भी
पित्तर जी उपर रैवे
मां री आस्था
अखूंट !