भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा इतनी उदास है / मनोज छाबड़ा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:57, 19 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज छाबड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> हवा इतनी उदास ह…)
हवा इतनी उदास है
कि
लगता है आसपास
किसी परिचित की मृत्यु का समाचार घुला है
सूखे मैदानों से
कुछ यूँ गुज़रती है हवा थकी-सी
कि जैसे
नहीं बदलेगी कभी ठंडी हवा में
मैदान में बिखरे
पुराने अख़बार हिलते तक नहीं
सर्द पड़े हैं वैसे ही
जैसे नए होते हुए भी
संवेदनहीन थे
(मृत्यु के समाचारों के अलावा
कुछ नहीं बताते अख़बार)
उधर हवा
एक पेड़ के नीचे
मृत्यु के समाचार पढ़कर
अपने घुटनों पर माथा रखकर
सुबकने लगती है