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हवा इतनी उदास है / मनोज छाबड़ा

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हवा इतनी उदास है
कि
लगता है आसपास
किसी परिचित की मृत्यु का समाचार घुला है
सूखे मैदानों से
कुछ यूँ गुज़रती है हवा थकी-सी
कि जैसे
नहीं बदलेगी कभी ठंडी हवा में
मैदान में बिखरे
पुराने अख़बार हिलते तक नहीं
सर्द पड़े हैं वैसे ही
जैसे नए होते हुए भी
संवेदनहीन थे
(मृत्यु के समाचारों के अलावा
कुछ नहीं बताते अख़बार)
उधर हवा
एक पेड़ के नीचे
मृत्यु के समाचार पढ़कर
अपने घुटनों पर माथा रखकर
सुबकने लगती है