भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुकुमार राय

Kavita Kosh से
Kavyana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:52, 23 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मकड़ी और मक्खी] <poem> (मकडी) धागा बुना अंगना में मैंने जाल बुना कल …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मकड़ी और मक्खी]

  (मकडी)
धागा बुना अंगना में मैंने
जाल बुना कल रात मैंने
         जाला झाड साफ़ किया है वास *
आओ ना मक्खी मेरे घर
आराम मिलेगा बैठोगे जब
         फर्श बिछाया देखो एकदम खास *
         (मक्खी)
छोड़ छोड़ तू और मत कहना
बातों से तेरा मन गले ना
         काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं*
फंस गया गर जाल के अन्दर
कभी सुना है वो लौटा फिर
         बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं *
           (मकड़ी)
हवादार है जाल का झूला
चारों ओर खिडकी है खुला
          नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *
आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर
सो जाओ अपने पर मोड़कर
          भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद *
            (मक्खी)
ना चाहूँ मैं कोई झूला
बातों में आकर गर स्वयं को भूला
          जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *
तेरे घर नींद गर आयी
नींद से ना कोई जग पाए
         सर्वनाशा है वो नींद का कतरा *
             (मकड़ी)
वृथा तू क्यों विचारे इतना
इस कमरे में आकर देख ना
         खान-पान से भरा है ये घरबार *
आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में
नाच-गाकर रह इस घर में
         चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह की तरह *
              (मक्खी)
लालच बुरी बला है जानूं
लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं
          झूठा लालच मुझे मत दिखा रे *
करें क्या वो खाना खाकर
उस भोजन को दूर से नमस्कार
          मुझे यहाँ भोजन नही करना रे *
              (मकडी)
तेरा ये सुन्दर काला बदन
रूप तुम्हारा सुन्दर सघन
          सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे *
नैनों में हजार माणिक जले
इस इन्द्रधनुष पंख तले
          छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे *
            (मक्खी)
मन मेरा नाचे स्फूर्ति से
सोंचू जाऊं एक बार धीरे से
            गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *
ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना
जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना
          फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली *
              (उपसंहार)
दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया
आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया
          दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
बातों में आकर ही लोग मर जाए
मकड़जीवी धीरे से समाये
           दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो *


कवि सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद