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काळजयी रचणा / कन्हैया लाल सेठिया
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बैठो हूं
ले‘र
कलम‘र कागद,
अडीकूं
विचारां नै
पण बै
मनमौजी
कोनी आवै
भाज‘र
जिंया आवै
गाय ठाण पर,
कठै जाऊं अबै,
ढलती सिंझ्या
रूलिंयाडां रै लार ?
कदास आसी
मोड़ा बैगा
तो कोनी लावै
बां रै अरथणियों
सबद,
बिना मिल्यां
सगला संजोग
रचीजणी दौरी
काळजयी रचणा !