भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी आँख जो पुरनम नहीं है / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>हमारी आँख जो पुरनम नहीं है न समझो हमको कोई गम नहीं है ये कह कर रो…)
हमारी आँख जो पुरनम नहीं है
न समझो हमको कोई गम नहीं है
ये कह कर रोकते हैं आँसुओं को
अभी बरसात का मौसम नहीं हैं
खुदा है आसमानों पर अभी तक
तेरी आवाज में ही दम नहीं है
सियासत रास आयी है उसी को
जो अपनी बात पर कायम नहीं है
हमारी बात में अब 'मै' ही 'मै' है
हमारी बात में अब 'हम' नहीं है
मेरी बिटिया गयी ससुराल जब से
मेरे आँगन में वो छम छम नहीं है
कोई भगवान है सुनते है लेकिन
अब इस अफवाह में कुछ दम नहीं है