Last modified on 2 जनवरी 2011, at 08:32

आइनों का नगर देखते / कुमार अनिल

Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:32, 2 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आइनों का नगर देखते मेरा दिल झाँककर देखते दिल तो रोया मगर लब हँस…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आइनों का नगर देखते
मेरा दिल झाँककर देखते

दिल तो रोया मगर लब हँसे
हम हैं क्या बाहुनर देखते

पा गए सब किनारे मगर
रह गए हम भँवर देखते

देखते हैं जो मंजिल मेरी
काश मेरा सफ़र देखते

खुद को ही देखते तुम वहां
जब मेरी चश्मेतर देखते

वो गए थे जिधर से, हमें
उम्र गुजरी उधर देखते

याद आती 'अनिल' की ग़ज़ल
तुम उसे सोच कर देखते