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आइनों का नगर देखते / कुमार अनिल
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आइनों का नगर देखते
मेरा दिल झाँककर देखते
दिल तो रोया मगर लब हँसे
हम हैं क्या बाहुनर देखते
पा गए सब किनारे मगर
रह गए हम भँवर देखते
देखते हैं जो मंजिल मेरी
काश मेरा सफ़र देखते
खुद को ही देखते तुम वहां
जब मेरी चश्मेतर देखते
वो गए थे जिधर से, हमें
उम्र गुजरी उधर देखते
याद आती 'अनिल' की ग़ज़ल
तुम उसे सोच कर देखते