कुछ और मुक्तक / कुमार अनिल
कांटो के बीच रह कर, खुश हैं गुलाब हैं हम
टेढे सवाल का भी सीधा जवाब हैं हम
न तो हमको पढना मुश्किल, न हमें समझना मुश्किल
पूरी तरह से यारो, खुली इक किताब हैं हम
मुश्किल बहुत है माना, आसान बनके देखें
हम इस नये समय की पहचान बनके देखें
हिंदू, मुसलमां यारो बन लेंगे फिर कभी हम
आओ कि इस घडी बस इन्सान बनके देखें
सुलगा रहा जो हमको ठंडा वो ताप कर दें
दिल में जमे कलुष को हिलमिल के साफ कर दें
कि ये वक्त है खुशी का, अवसर है दोस्ती का
इक दूसरे को आओ, हम दोनों माफ कर दें
शिकवे शिकायतें सब, आओ कि भूल जायें
इन अन्धी बस्तियों में दीपक नये जलायें
ये दूरियां दिलों की, मिट जायेंगी स्वयं ही
कुछ तुम करीब आओ, कुछ हम करीब आयें
गीतों की वादियों में आओ टहल के देखें
इन खूनी मंजरों के चेहरे बदल के देखें
ये नफरतों के घेरे खुद ही मिटेंगे इक दिन
इस प्यार की डगर पे कुछ दूर चल के देखें
टूटे हुए हृदय की झंकार बॉंटता हूं
सब फूल बॉंटते हैं, मैं खार बॉंटता हूं
ये गर्मिये मुहब्बत मिट जाये न दिलों से
यारो इसी लिये मैं अंगार बॉंटता हूं
कुछ अंधेरे उठे रोशनी खा गये
चन्द झूठे शगल मन को बहला गये
गीत गुमसुम हुए, है रूआंसी ग.ज.ल
काव्य के मंच पर चुटकुले छा गये
मेरी राहों में कांटे बिछा दीजिये
मेरी दुश्वारियों को बढा दीजिये
गर इसी से शहर बच सके दोस्तो
तो खुशी से मेरा घर जला दीजिये
भूली बिसरी सी इक कहानी हू
बहती ऑंखों का खारा पानी हू
तुम मुझे दिल में छिपा कर रख लो
गुजरे लम्हों की इक निशानी हू