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रण में बसर करते हुए / दिनेश सिंह
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व्यूह से तो निकलना ही है
समर करते हुए
रण में बसर करते हुए ।
हाथ की तलवार में
बाँधे क़लम
लोहित सियाही
सियासत की चाल चलते
बुद्धि कौशल के सिपाही
ज़हर-सा चढ़ते गढ़े जज़्बे
असर करते हुए
रण में बसर करते हुए ।
बदल कर पाले
घिनाते सब
उधर के प्यार पर
अकीदे की आँख टिकती
जब नए सरदार पर
कसर रखकर निभाते
आबाद घर करते हुए
रण में बसर करते हुए ।
धार अपनी माँज कर
बारीक करना
तार-सा
निकल जाना है
सुई की नोक के उस पार सा
ज़िन्दगी जी जाएगी
इतना सफ़र करते हुए
रण में बसर करते हुए ।